Tuesday, August 7, 2007

तेरे बिन पल भर गुजर होती नही......

हर किसी हाथ मैं लम्बी उमर होती नहीं..
टूटता हैं जब ये दिल ,दिल को खबर होती नहीं..
मांगता हूँ मौत तो सब लोग कहते हैं मसीहा..
कौन समझे जिन्दगी मुझसे बसर होती नहीं..
सूखते हैं लब पपीहे के भला हम क्या करें..
कम्बख्त ये बारिश कभी भी वक़्त पर होती नही..
तू ना करना देख कर कोशिश मुझे ओ बे-सबब..
ये हवा दुनियाँ में सब की नामावर होती नहीं..
"क्या करूँ अब हो गया है तुझसे इतना फांसला..
सच कहूँ पर तेरे बिन पल भर गुजर होती नही..
विपिन चौहान "मन"

10 comments:

शैलेश भारतवासी said...

मन भाई,

क्या बात है। शुरूआत अच्छी कविता से की है आपने। मैं इसका लिंक 'हिन्द-युग्म' से जोड़ रहा हूँ

Gaurav Shukla said...

बहुत अच्छा लिखा है मन जी
बधाई स्वीकारें

सस्नेह
गौरव शुक्ल

डाॅ रामजी गिरि said...

सूखते हैं लब पपीहे के भला हम क्या करें..
कम्बख्त ये बारिश कभी भी वक़्त पर होती नही..

खूबसूरत अभिव्यक्ति है .
-Dr.RG

आशीष "अंशुमाली" said...

मतला ही बहुत खूबसूरत है
हर किसी हाथ मैं लम्बी उमर होती नहीं..
टूटता हैं जब ये दिल ,दिल को खबर होती नहीं..
बधाई स्‍वीकारें।

pankaj ramendu said...

achchi gazal hai, man ji man se ek baat kahna chata hun mujhe matle me thodi si kami nazar aa rahi hai shayad aap pade to samjh jayene
dil jab tootta hai to dil ko hi shayad sabse pahle malum chalta hai, isko aap dil todne wale se jod sakte hain, yeh meri salah hai, kripa kar anyatha na lejiyega

शैलेश भारतवासी said...

मन जी,

कृपया पोस्ट के शीर्षक क्षेत्र (टाइटल-फ़ील्ड) में भी कुछ लिखें। उससे पाठक को कविता चुनने में आसानी होती है।

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के said...

bahut khoob man, bahut dino baad kuchh achha padne ko mila hai... andar tak chhu gaye ho dost..aise hi likhte raho...

शोभा said...

विपिन जी
गज़ल शैली में लिखी आपकी काविता बहुत अच्छी लगी ।
अगर तरन्नुम में सुनाएँगे तो और अच्छी लगेगी ।
शुभकामनाओं सहित

श्रद्धा जैन said...

vipin ji
ek bhaut hi achhi gazal ke saath mulaqat sachhe ehsaas ko likh gaya hai
aapse milna aur in sunder se khyaal se milna dono hi bhaut achha lage

sukriya aapne hume khud ko padhne ka avsar diya

SahityaShilpi said...

विपिन जी!
बहुत ही अच्छी गज़ल से शुरुआत की है. इससे आपकी क्षमता का अच्छा परिचय मिलता है.
परंतु मुझे चौथा शेर समझ नहीं आया. इसके पहले मिसरे में आप क्या कहना चाहते हैं, ज़रा स्पष्ट करें ताकि मैं भी इसका पूरा आनंद उठा सकूँ. पहले शेर के पहले मिसरे में भी शायद ’हर किसी हाथ मैं’ की जगह ’हर किसी के हाथ में’ होता तो बेहतर होता.