Tuesday, October 30, 2007
Wednesday, October 3, 2007
जमीं पे चलता हुआ माहताब आँखों ने
देखा है दूर एक तनहा सा ख़्वाब आँखों ने
जमीं पे चलता हुआ माहताब आँखों ने
मुझ से करता है बहुत से सवाल दिल उसका
वो न समझा कि दिया है जवाब आँखों ने
कोई मज़बूरी नहीं, थी ये हया की शोखी
रुख़ पे ढलता हुआ देखा नकाब आँखों ने
अब ज़माना ये मुझे चाहे चढा दे सूली
वो खुदा है ये किया इंतखाब आँखों ने
जमीं पे चलता हुआ माहताब आँखों ने
मुझ से करता है बहुत से सवाल दिल उसका
वो न समझा कि दिया है जवाब आँखों ने
कोई मज़बूरी नहीं, थी ये हया की शोखी
रुख़ पे ढलता हुआ देखा नकाब आँखों ने
अब ज़माना ये मुझे चाहे चढा दे सूली
वो खुदा है ये किया इंतखाब आँखों ने
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